व्यंजन संधि किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं?(vyanjan sandhi) , व्यंजन संधि की परिभाषा क्या है?

व्यंजन संधि किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं?(vyanjan sandhi) , व्यंजन संधि की परिभाषा क्या है?

यदि संधि आप संधि के बारे में पढ़ें हैं तो आपको व्यंजन संधि(Vyanjan sandhi) को समझने में कोइ दिक्कत नहीं होगा । आपको याद दिला दूँ की “दो अत्यंत संयोगी वर्णों के मिलने जो विकार उत्पन्न होता हैं वह संधि कहलाता हैं।” व्यंजन में दो व्यंजन वर्णों का मेल होता हैं । 

व्यंजन वर्ण की परिभाषा –  व्यंजन वर्ण के साथ “व्यंजन वर्ण या या स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन होता हैं उसे ही व्यंजन संधि कहा जाता हैं। जिन दो वर्णों में संधि होती हैं उनमें पहला वर्ण व्यंजन हो तथा दूसरा वर्ण स्वर हो या व्यंजन कोइ भी हो और इनके मिलने से जो विकार उत्पन्न होता हैं उसे व्यंजन संधि कहा जाता हैं।

 

व्यंजन संधि किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं?(Vyanjan sandhi):

व्यंजन संधि में पहला ध्वनि(वर्ण) व्यंजन हो और उसके बाद दूसरा ध्वनि व्यंजन या स्वर में  कोइ भी हो तो इनके मिलने से जो विकार उत्पन्न होंगें वह व्यंजन संधि कहा जायेगा।

शायद अब आप पूर्ण रूप से समझ गए होंगें कि व्यंजन संधि क्या हैं। एक बात ध्यान देना हैं कि संधि को समझने के लिए हिंदी वर्णमाला को अच्छी तरह से समझना होगा नहीं तो आप संधि को कभी नहीं समझ सकते हैं और न किसी शब्द का संधि कर पायेंगें और न ही संधि विच्छेद।

 

(ध्यान दें – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , ऋ   को  स्वर वर्ण कहते हैं  और क ,ख , ग , घ – – – – – – – – – – से  ह , क्ष , त्र , ज्ञ तक व्यंजन वर्ण होते हैं) 

 

 

व्यंजन संधि के उदाहरण (vyanjan sandhi ke udaharan):

व्यंजन संधि के उदाहरण जो निम्नलिखित हैं:

  • वाक् + ईश = वागीश  ( इसमें व्यंजन ध्वनि और स्वर ध्वनि का योग हुवा हैं ) 
  • जगत + ईश = जगदीश।
  • दिक् + गज = दिग्गज ।
  • भगवत + भक्ति = भगवतभक्ति ।
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर ।
  • वाक् + जाल = वाग्जाल , इत्यादि।

 

 

व्यंजन संधि के कितने नियम होते हैं?

 

व्यंजन संधि के  नियम किसी शब्द के संधि करने या विच्छेद करने में अहम् भूमिका निभाती हैं, इसके नियमों को जानने के बाद ही व्यंजन संधि को पूर्ण रूप से समझ सकते हैं जो की महत्पूर्ण नियम निम्नलिखित हैं।

 

नियम-1 . जब किसी वर्ग का पहला वर्ण किसी अन्य वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ग से मिलता हैं या किसी अन्य स्वर वर्ण के साथ मिलता हैं तो अपने वर्ग का तीसरा वर्ण बन जाता हैं । अर्थात कहने का मतलब हैं किसी भी वर्ग के पहला अक्षर(वर्ण) जैसे- क , च ,ट , त , प के बाद कोइ भी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आता हैं अथवा कोइ भी स्वर वर्ण आता हैं तो (क , च ,ट , त , प) वर्ग के स्थान पर इनके तीसरा वर्ण आ जाता हैं ।

 

  • मतलब का तीसरा वर्ण ‘‘ 
  • का तीसरा वर्ण ‘ज’ 
  • का तीसरा वर्ण ‘ड‘ 
  • का तीसरा वर्ण ‘द’ और 
  • का तीसरा वर्ण हो जाता हैं । 

एक बात आप ध्यान दीजिए संधि को उदाहरण से ही आसानी से समझा जा सकता हैं नहीं तो बातें सर के ऊपर से भागते रहते हैं इसलिए कुछ उदाहरण से समझते हैं जो निम्नलिखित हैं ।

 

(i) उत + ऐति   = उदेति ( यहाँ पर उत के अंतिम वर्ण हैं और के बाद वर्ण आया हैं जो कि संधि करने पर  का तीसरा वर्ण हो गया हैं  इसतरह पुरे शब्द उदेति बन गया हैं । एक बात तो आपको जरूर पता होगा कि संधि में समय प्रथम पद के अंतिम वर्ण और दूसरे पद के प्रथम वर्ण का मेल होता हैं यदि संधि के बारे में नहीं जानते हैं कि ‘संधि क्या होता हैं’ तो सबसे पहले सिर्फ संधि के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए तब उनके भेदों को समझ पायेंगें ।

(ii) जगत + ईश्वर  =  जगदीश्वर ( यहाँ पर जगत के अंतिम वर्ण हैं और दूसरा पद ईश्वर के प्रथम वर्ण    हैं जो कि एक स्वर वर्ण हैं इस तरह दोनों के संधि होने पर के तीसरा वर्ण बन गया हैं )

(iii) दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम ।

(iv) वाक् + दत्त = वाग्दत्त ।

(v) सत + उक्ति = सदुक्ति , इत्यादि हो सकते हैं।

 

 

Vyanjan sandhi

 

 

नियम 2  किसी वर्ग का पहला वर्ण( क, च ,ट ,ट ,प ) के बाद उसी वर्ग का पाँचवा अक्षर आए तो प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण हो जाता हैं , दूसरे शब्दों में कहे तो किसी वर्ग का पहला वर्ण आगे आने वाले अनुनासिक से मिलता हैं तो उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण बन जाता हैं । आपको बता दें की संधि में जब तक उदाहरण को नहीं देखते हैं तब तक इसका नियम भी जल्दी समझ में नहीं आते हैं इसलिए इसे उदाहरण से समझते हैं जो निम्नलिखित हैं ।

जैसे – 

  • जगत + नाथ = जगन्नाथ ( आप यहाँ ध्यान से देखिए प्रथम शब्द जगत का अंतिम वर्ण हैं और उसके बात दूसरे शब्द नाथ के प्रथम वर्ण हैं मतलब वर्ग के बाद  उसी के पाँचवा वर्ण  या अनुनासिक वर्ण  आया हैं अब  संधि होने पर  उसी वर्ग के पाँचवा वर्ण बन जाता हैं ।)
  • उत + नय = उन्नत ।
  • मृत + मय = मृण्मय ( यहाँ पर वर्ण के बाद प वर्ग के पाँचवा वर्ण म आया हैं इसलिए संधि होने पर वर्ग का पाँचवा वर्ण आया हैं )
  • तत + मय = तन्मय ।
  • षट + मास = षण्मास।

 

 

(ध्यान देंक वर्ग का मतलव  क , ख , ग , घ , ड. होता हैं । च वर्ग का मतलब च , छ , ज , झ , ञ होता हैं । त वर्ग – त , थ , द , ध , ण होता हैं , अब आप ट वर्ग और प वर्ग का भी मतलब  समझ गए होंगें । दूसरी बात जिस वर्ण का उच्चारण नाक से होता हैं उसे अनुनासिक कहा जाता हैं।)

 

 नियम 3 –  के आगे कोइ स्वर या ग , घ , द , ध , ब , भ , अथवा य , र , ल , व्  रहे तो के स्थान पर हो जाता हैं ।

जैसे –

  • सत + आचार = सदाचार ।
  • उत + गम = उद्गम ।
  • उत + योग = उद्योग ।
  • उत + यान = उद्यान ।
  • सत + गुरु = सदगुरु ।

आप समझ गए होंगें के बाद कोइ स्वर वर्ण आता हैं अथवा   ग , घ , द , ध , ब , भ  या य , र , ल , व् में से कोइ भी वर्ण ।

(ध्यान दें – इतना तो आप जरूर जानते हैं की संधि दो वर्णो के मेल से होता हैं लेकिन महत्पूर्ण बात यह समझना हैं की किसी शब्द के अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के साथ मेल होता हैं मतलब दोनों वर्ण जुड़ता हैं इसे समझने के लिए ‘संधि क्या होता हैं’ इसके बारे में आवश्यक जानकारियां प्राप्त करें ।)

 

 

नियम 4 –   के बाद या हो तो- के बदले में तथा के बदले में हो जाता हैं ।

जैसे

  • + छेद = उच्छेद ।
  • + शिष्ट = उच्छिष्ट ।
  • उत + शृंखला  = उच्छृंखला इत्यादि ।

 

 

नियम 5 –  के पश्चात हो तो , के बदले में   तथा के बदले में हो जाता हैं ।

जैसे –

  • उत + हत = उद्धत ।
  • उत + हरण = उद्धरण ।
  • तत + हित = तद्धित आदि ।

 

 

Vyanjan sandhi

 

 

नियम 6  के बाद क , त , प , स हो तो संयुक्त हो जाता हैं ।

जैसे –

उत + पाद = उत्पाद । ( यहाँ पर के बाद आया हैं इसलिए संयुक्त हो गया हैं ) 

तत + काल = तत्काल

सत + संग = सत्संग इत्यादि ।

 

नियम 7 किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के पश्चात , किसी वर्ग का पाँचवा वर्ण रहे तो  प्रथम वर्ण के बदले में उस वर्ग का पाँचवा वर्ग  हो जाता हैं ।

जैसे –

  • उत + नति = उन्नति । ( यहाँ पर प्रथम वर्ण हैं इसके बाद आया हैं जो की वर्ग का पाँचवा वर्ण हैं तो प्रथम वर्ण के बदले में उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण बन गया हैं।)
  • उत + माद = उन्माद ।
  • सत + मार्ग = सन्मार्ग ।
  • उत + मत = उन्मत इत्यादि ।

 

 

नियम 8 – के बाद हो तो के बदले में  ज्ञ हो जाता हैं ।

जैसे – 

  • यज + न = यज्ञ ।
  •  राज + नी = राज्ञी ।

 

 

नियम 9 –   के पश्चात् किसी वर्ग का कोइ भी वर्ण हो तो के बदले में उस वर्ग का पाँचवा वर्ण हो जाता हैं ।

जैसे –

  • किम + तु = किन्तु ।
  • परम + तु = परन्तु ।
  • शम + कर = शंकर ।
  • शाम + ति = शांति
  • अलम +  कार = अलंकार ।

 

 

नियम 10 – म के बाद अंतःस्थ या उष्म वर्ण रहे तो , के बदले में अनुस्वार हो जाता हैं ।

जैसे –

  • सम + यम = संयम ।
  • सम + वाद = संवाद ।
  • सम + हार = संहार ।
  • सम + योग = संयोग ।
  • स्वयम + वर = स्वयंवर आदि ।

 

नियम 11 –   न् या म् के पश्चात् स्वर-वर्ण रहे, तो दोनों के मिलकर संयुक्त होता हैं और  हल का चिह्न लुप्त हो जाता है ।

जैसे

  • अन् +अन्त=अनन्त
  • अन् + अन्य = अनन्य
  • अन् + अभिज्ञ= अनभिज्ञ ।
  • अन् + उदार=  अनुदार ।
  • अन् + उपयोगी = अनुपयोगी इत्यादि ।

 

 नियम 12 के बाद या हो, तो के बदले में तथा के बदले में होता है।

जैसे-

  • अष् + त = अष्ट।
  •  शिष् + त = शिष्ट
  • इष् + त = इष्ट ।
  • कष् + त = कृष्ट ।
  • ओष् + थ = ओष्ठ इत्यादि ।

 

 

नियम 13- मूल या दीर्घ स्वर के पश्चात् रहे तो के पहले एक च् की वृद्धि होती है।

जैसे-

  • अनु + छेद = अनुच्छेद
  • वि + छिन्न = विच्छिन्न।

 

 

 

नियम 14 – सम् या परि उपसर्ग और कृ धातु का संयोग हो, तो दोनों के मध्य सू, ष् की वृद्धि होती है ।

जैसे –

  • सम् + कृत = संस्कृत
  • परि + कार = परिष्कार ।
  • सम् + कार= संस्कार ।
  • परि + करण = परिष्करण ।
  • सम् + क्रिया=  संस्क्रिया ।
  • परि + कृत = परिष्कृत इत्यादि ।

 

नियम 15 यदि ऋ, र या के परे रहे और इनके मध्य में चाहे कोइ स्वर वर्ण  , कवर्ग, पवर्ग अनुस्वार, य, व, ह रहे तो के स्थान में होता है । 

जैसे-

  • ॠ + न = ऋण ।
  • भर + अन = भरण ।
  • राम + अयन= रामायण
  • प्र + मान = प्रमाण
  • भूष् + अन = भूषण
  • तृष् + ना = तृष्णा
  • कृष् + न = कृष्ण

 

नियम 16 संस्कृत के यौगिक शब्दों के प्रथम शब्द के अन्त में यदि न् हो तो उसका लोप हो जाता है ।

जैसे –

  • मन्त्रिन् + मण्डल = मंत्रिमण्डल ।
  • हस्तिन् + दन्त = हस्तिदन्त ।
  • प्राणिन् + मात्र = प्राणिमात्र ।
  • राजन् + आज्ञा = राजाज्ञा इत्यादि ।

 

 नियम 17 –  संस्कृत के अहन् शब्द के परे किसी भी वर्ण के आने पर न् के स्थान में र् होता है।

 

जैसे- अहन्+ निश = अहर्निश

अहन् + मुख = अहर्मुख ।  

 

निष्कर्ष – अभी आपने जाना की “व्यंजन संधि किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं?(Vyanjan sandhi) व्यंजन संधि की परिभाषा क्या है?” जिसके बारे में आपको सभी प्रकार के जानकारी प्रदान की गई साथ में  सभी  नियमों के बारे में बताया गया हमें उम्मीद हैं की आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गया होगा।

   

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