स्वर संधि किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?(swar sandhi) , स्वर संधि को कैसे पहचानते हैं?
दो स्वर वर्ण के मिलने से जो विकार उत्पन्न होते हैं उसे स्वर संधि कहा जाता हैं । इस संधि में दो स्वर वर्ण आपस में मिलता हैं जिसके कारण एक नया वर्ण की उत्पति होती हैं और इनमें मिलने वाली दोनों ध्वनियाँ स्वर वर्ण ही होती हैं।
जैसे –
- देव + आलय = देवालय , यहाँ पहला शब्द देव हैं जिसमें ‘अ’ अंतिम स्वर वर्ण हैं तथा दूसरा शब्द “आलय” का पहला वर्ण ‘आ’ हैं , दोनों मिलकर ‘आ’ बन जाता हैं। अर्थात अ + आ = आ हो जाता हैं।
- विद्या + आलय = विद्यालय (यहाँ विद्यालय का संधि विच्छेद किया गया हैं जो दो शब्द को आपस में जोड़ा गया हैं जिसमें आ + आ कि संधि हुई हैं जो दोनों स्वर वर्ण मिलकर आ बना हैं )
- अति + इत = अतीत ( इसमें दो वर्ण इ + इ कि संधि हुई हैं जो दोनों मिलकर ‘ई’ बन गई हैं )
इसी प्रकार-
- महि + इंद्र = महीन्द्र ।
- सु + उक्ति = सुक्ति ।
- कदा + अपि = कदापि इत्यादि
स्वर संधि क्या होता है?(swar sandhi) , स्वर संधि के पांच भेद कौन कौन से होते हैं?
संधि क्या होता हैं इसके बारे में ऊपर समझ चुके होंगें , फिर से बताना चाहते हैं की जब दो स्वर वर्ण आपस में मिलते हैं तो एक नए वर्ण का विकार होता हैं जो संधि कहलाता हैं।
किसी भी शब्द का संधि विच्छेद करते समय यह देखना चाहिए कि वह किस शब्द से टूट रहा हैं अर्थात कोइ शब्द सार्थक रूप से दो भागों में कहा से अलग हो रहा हैं और यह भी देखना चाहिए कि संधि के किस नियमों को संतुष्ट सकते हैं जहाँ से सार्थक पूर्ण अलग होते हैं उसी अनुसार उसका विच्छेद या संधि करना चाहिए होता हैं। दूसरी बात हमें संधि में किसी शब्द का संधि विच्छेद करना हो तो इसके लिए संधि के भेदों को अच्छी तरह से पढ़ लेना आवश्यक होता हैं।
swar sandhi
स्वर संधि के भेद एवं स्वर संधि को कैसे पहचानते हैं?
स्वर संधि के भेद/प्रकार (swar sandhi ke bhed) : जब स्वर संधि को पढ़ लेंगें तो इसकी पहचान भी आसानी से कर लेंगें बस आपको यह ध्यान रखना हैं की स्वर स्वर संधि में स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण का मेल होता हैं ।
स्वर सन्धि के पाँच भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं।
- दीर्घ सन्धि
- गुण सन्धि
- वृद्धि सन्धि
- यण् सन्धि और
- अयादि सन्धि ।
(1) दीर्घ सन्धि :
इसमें दो स्वर वर्ण के मिलने से दीर्घ स्वर बन जाता हैं अर्थात दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं । यदि अ, आ, इ, ई, उ, ऊ के बाद वही वर्ण आए तो दोनों मिलकर क्रमशः अ आ, ई, ऊ हो जाते हैं जिसे निचे देख सकते हैं ।
अ + अ = आ | इ + इ = ई | उ + उ = उ |
अ + आ = आ | इ + ई = ई | उ + ऊ = ऊ |
आ + अ = आ | ई + इ = ई | ऊ + उ = ऊ |
आ + आ = आ | ई + ई = ई | ऊ + ऊ = ऊ |
1 . ह्रस्व एवं दीर्घ अकार की सन्धि किस प्रकार होते हैं-
(i) अ + अ = आ
- कुश + अग्र = कुशाग्र
- अंग + अंगी= अंगांगी( इसमें अंग के अंतिम वर्ण में ‘अ’ हैं मतलब कि ‘ग’ में अ छिपा हैं तथा अंगी के प्रथम पद ‘अं’ में भी ‘अ’ छिपा हैं इसप्रकार दोनों मिलकर ‘आ’ बन गया हैं और अंगांगी बन गया हैं इस तरह अन्य शब्द को भी समझा सकते हैं।
(ii) अ + आ = आ
- गज + आनन = गजानन
- पुस्तक + आलय =पुस्तकालय
(ध्यान दें- स्वर वर्ण 11 होते हैं वह हैं (अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ) – जिसमें एक ह्रस्व तथा दूसरा दीर्घ होते हैं जैसे कि अ ह्रस्व हैं तो आ दीर्घ हैं , इ ह्रस्व हैं तो ई दीर्घ हैं , उ ह्रस्व हैं तो ऊ दीर्घ हैं अब आप समझ गए होंगें कि ह्रस्व दीर्घ क्या हैं ।)
(iii) आ + अ = आ
- यथा + अपि = यथापि ।
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ।
- रेखा + अंकित = रेखांकित ।
(iv) आ + आ = आ
- महा + आत्मा = महात्मा ।
- कला + आत्मक = कलात्मक ।
- वार्ता + आलाप = वार्तालाप ।
2 . अब ह्रस्व और दीर्घ इकार कि सन्धि :
(v) इ + इ = ई
- अति + इत = अतीत
- प्रति + इत = प्रतीत
- रवि + इंद्र = रविंद्र ।
(vi) इ + ई = ई
- अधि + ईश = अधीश
- परि + इक्षा = परीक्षा
- मुनि + ईश = मिनीश
- गिरि + ईश = गिरीश ।
(vii) ई + इ = ई
- मही + इन्द्र = महीन्द्र
- रथी + इंद्र = रथींद्र ।
(viii) ई + ई = ई
- सती+ ईश = सतीश
- नदी + ईश = सतीश ।
3 . ह्रस्व और दीर्घ उकार कि सन्धि :
उ + उ = ऊ
- भानु + उदय = भानूदय
उ + ऊ = ऊ
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- लघु + उर्मि = लघूर्मि ।
ऊ + उ = ऊ
- वधु + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ
- भू + ऊषर = भूषर
- वधू + ऊहन = वधूहन ।
swar sandhi
(2) . गुण सन्धि :
यदि अ अथवा आ के बाद इ ई उ ऊ और ऋ रहे तो दोनों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होते हैं वह इस प्रकार होंगें –
1 . अ या आ के बाद इ अथवा ई आए तो दोनों मिलकर ए होगा :
जैसे :
- अ + इ = ए ( देव + इंद्र = देवेंद्र )
- अ + ई = ए ( गण + ईश = गणेश)
- आ + इ = ए ( महा + इंद्र= महेंद्र )
- आ + ई = ए ( उमा + ईश = उमेश )
2 . अ अथवा आ के बाद उ या ऊ आए तो दोनों मिलकर ओ हो जाता हैं :
जैसे –
- अ + उ = ओ ( चंद्र + उदय = चंद्रोदय )
- अ + ऊ = ओ ( जल + ऊर्मि = जलोर्मि )
- आ + उ = ओ ( महा + उत्स्व = महोत्स्व )
- आ + ऊ = ओ ( महा + ऊरू = महोरू )
3 . अ या अ के बाद ऋ आता हैं तो अर् हो जाता हैं :
जैसे :
- अ + ऋ = अर् ( देव + ऋषि = देवर्षि)
- आ + ऋ = अर् ( महा + ऋषि )
(3) वृद्धि सन्धि :
यदि अ अथवा आ के बाद ए ,ऐ , ओ , औ रहे तो इस तरह विकार उत्पन्न होंगें जो निम्नलिखित हैं ।
1 . अ या आ के बाद ऐ अथवा ए रहे हैं दोनों मिलकर ऐ होगा ।
जैसे –
- अ + ए = ऐ( एक + एक = एकैक)
- अ + ऐ = ऐ ( मत + ऐक = मतैक्य )
- आ + ए = ऐ( तथा + एव = तथैव )
- आ + ऐ = ऐ ( महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य )
2 . यदि अ या आ के बाद ओ या औ रहे तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता हैं:
जैसे –
- अ + ओ = औ ( परम + औषध = परमौषध )
- अ + औ = औ ( गुण + औदार्य = गुनौदर्य )
- आ + ओ = औ ( महा + ओज = महौज )
- आ + औ = औ ( महा + औषधि = महाऔषधि )
swar sandhi
(4) . यण् सन्धि :
यदि इ/ ई ,उ/ऊ , ऋ और लृ के बाद अपने से भिन्न कोइ स्वर वर्ण आए तो क्रमशः य , व , र और ल होता हैं और प्रथम पद का अंतिम वर्ण आधा हो जाता हैं ।
Note- पद का आधा होना हर जगह लागू नहीं होता हैं शार्थकता को ध्यान में रखते हुए सन्धि करना पड़ता हैं विशेष रूप से लृ के ल के अर्थ में होता हैं लेकिन लृ को हिंदी व्याकरण में कम व्यवहार में लिया जाता हैं संस्कृत व्याकरण में इसका स्थान ज्यादा मान्य हैं।
1 . इ/ ई का य हो जाता हैं।
जैसे –
- इ + अ = य ( अति + अधिक = अत्यधिक , और अति प्रथम पद हैं जिसका अंतिम पद त हैं जो सन्धि होने पर त आधा हो गया हैं।)
- ई + अ = य ( नदी + अम्बु = नद्यम्बू )
- प्रति + अंग = प्रत्यंग ।
- सखी + उवाच = सख्युवाच ।
2 . उ/ ऊ का व हो जाता हैं ।
जैसे –
- अनु + अय = अन्वय ।
- सु + आगत = स्वागत ।
- सु + आगतम = स्वागतम । ( सु प्रथम पद हैं जो आधा हो गया हैं और सन्धि होने के वाद स्वागतम हो गया हैं ।)
3 . ऋ का र हो जाता हैं।
जैसे –
- मातृ + आनंद = मत्रानन्द ।
- पितृ + आदेश = पित्रादेश ।
4 . लृ का ल हो जाता हैं ।
जैसे –
- लृ + आकृति = लाकृति ।
ध्यान रहे अपने से भिन्न स्वर होना चाहिए जैसे इ या ई को छोड़कर दूसरा कोइ स्वर होना चाहिए इसीप्रकार उ , ऊ , ऋ लृ को छोड़कर अन्य कोइ भी स्वर होना चाहिए।
(5) अयादि सन्धि – यदि ए , ऐ, ओ या औ के आगे कोई भिन्न स्वर वर्ण हो, तो इनके स्थान में क्रमश: अय्, आय् अव और आव् हो जाता हैं ।
जैसे –
- ए + अ = अय् ( ने + अन = नयन )
- ऐ + अ = आय् ( गै + अक = गायक )
- ओ + अ = अव ( भो +अन = भवन )
- औ + उक = आव् ( भौ + उक = भावुक )
इसी तरह –
- गै +अन = गायन )
- पो + इत्र = पवित्र ।
- पो + अन = पवन ।
निष्कर्ष – अभी आपने जाना कि स्वर संधि किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?(swar sandhi) , स्वर संधि को कैसे पहचानते हैं? जिसमें प्रमुख रूप से स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण का ही मेल हुवा हैं और इनके पाँचों भेदों को बहुत ही सरलता पूर्वक वर्णन किया गया हैं हमें आशा हैं कि यह जानकारियां आपके लिए बहुत महत्पूर्ण रहा होगा ।
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- इंग्लिश ग्रामर में Number किसे कहते हैं ? singular / Plural number क्या कहलाता हैं ?
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