swar sandhi ke prakar , (स्वर संधि के कितने प्रकार होते हैं?) – हिंदी व्याकरण ।

swar sandhi ke prakar (स्वर संधि के कितने प्रकार होते हैं?)

सबसे पहले आपको यह जानना हैं की स्वर किसे कहते हैं? इसके बाद आप स्वर संधि के प्रकार के बारे में भी अच्छी तरह से समझ पायेंगें।  सामान्य रूप से संधि का अर्थ मिलना होता हैं अतः जब स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण का मेल होता हैं तो वह स्वर संधि कहलाता हैं।

जैसे :

  • कदा + अपि = कदापि ।
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ।  
  • कला + आत्मक = कलात्मक ।

हिंदी/संस्कृत व्याकरण में स्वर संधि पाँच प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित हैं ।

  1. दीर्घ संधि 
  2. गुण संधि 
  3. वृद्धि संधि 
  4. यण संधि ( यहाँ ण हलन्त हैं)
  5. अयादि संधि 

 अभी आपने स्वर संधि के भेदों को जाने हैं अब इनके बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आप आगे के पेज को आवश्य पढ़ें । 

 

स्वर संधि के कितने प्रकार होते हैं?(swar sandhi ke prakar) :

ऊपर आपने स्वर संधि के प्रकार को जान चुके हैं अब आपको बारी – बारी से सभी प्रकारों के बारे में जानते हैं जो निम्नलिखित हैं।

(1) . दीर्घ संधि – जब दो सामान स्वर आपस में मिलते हैं तो वह दीर्घ हो जाता हैं अतः दो सामन(सवर्ण स्वर) के मिलने से जो विकार उत्पन होता हैं वह दीर्घ संधि कहलाता हैं। 

जैसे :

  • महा + आत्मा = महात्मा ।
  • विद्या + आलय = विद्यालय ।
  • वार्ता + लाप = वार्तालाप ।
  • रखा + अंकित = रेखांकित ।

 

आपको परीक्षाओं में संधि से दो तरह से प्रश्न करेंगें एक आपको किसी शब्द का संधि करने को कहेंगें या आपको संधि विच्छेद करने के लिए कहेंगें , इसे समझने के लिए निचे का उदाहरण को समझिए ।

प्रश्न – निम्नलिखित शब्दों का संधि विच्छेद करें ?

(i) रत्नाकर (ii) कुशासन (iii) साकार (iv) भानुदाय , इत्यादि , तो आपको इन सारे शब्दों संधि विच्छेद करना हैं । चालों मैं एक शब्द रत्नाकार का संधि विच्छेद कर देते हैं । रत्न + आकर = रत्नाकार । अब आपको दूसरी तरीका से प्रश्न किस प्रकार कर सकता हैं इसे आप निचे देखिये ।

प्रश्न – निम्नलिखित शब्दों का संधि करें ?

(i) स + आकार (ii  यथा   + अर्थ (iii) जन्म + अंतर (iv) मुनि + ईश , इत्यादि , अब आपको इसका संधि करना हैं अर्थात आपस में मिलाकर सार्थक शब्द बनाना हैं । ध्यान दीजिए संधि करने या संधि विच्छेद करने में शब्दों का सार्थक होना अति आवश्यक हैं अन्यथा आपका जबाब गलत हो जायेंगें । हम (i) का संधि कर देते हैं – स + आकर = साकार ।

 

ध्यान दें – सवर्ण का अर्थ होता हैं सामान जाती वाला स्वर अतः दीर्घ संधि में स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण का ही मेल होता हैं  इसे समझने के लिए आप निचे कुछ उदाहरण को देखिये जिससे आपको सब स्पष्ट हो जायेंगें ।

  • अ + अ = आ 
  • आ + अ = आ 
  • अ + आ = आ 
  • आ + आ = आ 

जैसे :

अंग + अंगी = अंगांगी ।

यथा + अर्थ = यथार्थ ।

कार्य + आलय = कार्यालय ।

सेवा + आश्रम + सेवाश्रम 

  • इ + इ  = ई
  • ई + इ = ई
  • इ + ई = ई 
  • ई + ई = ई 

जैसे :

अति + इत = अतीत ।

मही + इन्द्र = महिंद्र ।

अधि + ईश = अधीश ।

सती + ईश = सतीश ।

  • उ + उ = ऊ
  • उ + ऊ = ऊ 
  • ऊ + उ = ऊ 
  • ऊ + ऊ = ऊ 

जैसे :

सु + उक्ति = सूक्ति।

लघु + ऊर्मि = लघुर्मि। 

वधू + उत्सव = वधूउत्सव ।

वधू + ऊहन = वधूहन।

 

 

swar sandhi ke prakar

 

(2) . गुण संधि –  यदि अ या आ के बाद इ , ई , उ , ऊ अथवा ऋ रहे तो दोनों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होते  हैं वह गुण संधि कहलाता हैं।

 

इसे तालिका से समझे – 

  • अ + इ = ए
  • आ + ई = ए 
  • आ + इ = ए 
  • अ + ई = ए 

 जैसे :

(1) देव + इंद्र = देवेंद्र ।

(2) उमा + ईश = उमेश ।

(3) महा + इंद्र = महेंद्र ।

(4) गण + ईश = गणेश । 

  • अ + उ = ओ
  • अ + ऊ = ओ 
  • आ + उ = ओ 
  • आ + ऊ = ओ 

जैसे :

(1) देव + उक्ति = देवोक्ति ।

(2) जल + उर्मि = जलोर्मि ।

(3) महा + उत्सव = महोत्सव ।

(4) महा + ऊरु = महोरू ।

  • अ + ऋ = अर( र हलन्त हैं)
  • आ + ऋ = अर ( र में हलन्त)

जैसे :

देव + ऋषि = देवर्षि ।

राज + ऋषि = राऋषि।

महा + ऋषि = महर्षि ।

महा + ऋद्धि = महार्द्धि ।

 

 

 

(3) . वृद्धि संधि –  यदि अ या आ के बाद ए , ऐ , ओ , औ रहे तो – 

अ + ए = ऐ  एक + एक = एकैक ।
अ + ऐ = ऐ  परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य ।
आ + ए = ऐ  तथा + एव= तथैव ।
आ + ऐ = ऐ  महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य 
अ + ओ = औ परम  + ओषध = परमौषध । 
अ + औ = औ होता हैं ।  गुण + औदार्य ।

 

(4) . यण संधि – ह्रस्व या दीर्घ इ , उ , ऋ , लृ के पश्चात् कोइ भी भिन्न स्वर रहे , तो क्रमशः य , व , र , ल होता हैं । 

जैसे :

अति + अधिक = अत्यधिक । इ + अ = य (इ के बाद भिन्न स्वर अ आया हैं)
वि + अस्त = व्यस्त ।  इ + अ = य 
नि + ऊन = न्यून । इ + ऊ = यू ( इ के बाद ऊ आया हैं जो भिन्न स्वर हैं)
प्रति + एक = प्रत्येक । इ + ए = ये ।
अनु + अय = अन्वय । उ + व = व । 
सु + आगत = स्वागत । उ + आ ।
अति + आचार = अत्याचार। इ + आ = या ।
पितृ + आदेश = पित्रादेश ।  ऋ + आ = र ।
ल + आकृति = लाकृति । लृ + आ = आ ।
अति + उक्ति = अत्युक्ति । इ + उ = अत्युक्ति ।

 

 

(5) अयादि संधि –  ए , ऐ , ओ या औ के बाद कोइ भिन्न स्वर आये तो इनके स्थान पर क्रमशः अय , आय , अव , आव होता हैं। ध्यान दीजिये अय और आय के य में हलन्त लगा हैं अर्थात य हलन्त हैं।

जैसे :

ने + अन = नयन ।  ई + अ = अय हुवा हैं , ऐ के स्थान पर अय हुवा हैं ।
गो + ईश = गवीश । ओ के स्थान में अव हुवा हैं ।
पौ + अक = पावक ।   औ के बाद अ आया हैं इसलिए औ + अ = आव ।

 

 

निष्कर्ष – अभी आपने जाना की स्वर संधि कितने प्रकार के होते हैं(swar sandhi ke prakar) , जिसके बारे में सार्थकपूर्ण जानकारी दे दी गई । हमें उम्मीद हैं की आपको अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगें ।

 

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