संधि किसे कहते हैं(sandhi kise kahate hain) संधि के कितने भेद होते हैं? संधि की परिभाषा क्या है?

संधि किसे कहते हैं संधि के कितने भेद होते हैं प्रत्येक के दो दो उदाहरण दीजिए? , संधि की परिभाषा क्या है? – sandhi kise kahate hain

संधि का अर्थ मिलना , योग अथवा मेल होता हैं , व्याकरण में जब पास के दो ध्वनि या वर्ण आपस में मिलता हैं तो वह संधि कहलाता हैं। मूल बात यह हैं की जब दो शब्द एक दूसरे के करीब आते हैं तो पहले शब्द के अंतिम ध्वनि तथा दूसरे शब्द के प्रथम ध्वनि आपस में मिल जाते हैं इस प्रकार उन दोनों शब्दों की संधि हो जाते हैं।

संधि की परिभाषा क्या है?- दो अन्यंत संयोगी वर्ण के मिलने से जो विकार (ध्वनि) उत्पन्न  होते हैं वह संधि कहलाता हैं। अर्थात जब दो वर्ण आपस में मिलते हैं तो उसमें एक विकार उत्पन्न होता हैं और वह दो शब्दों को शार्थक रूप से आपस में जोड़ देता हैं ।  

 जैसे :

1 . विद्या + अर्थी  =  विद्यार्थी। 

    आ + अ = आ  ।

2 . विद्या + आलय = विद्यालय ।

  आ + आ = आ ।

 

 

संधि किसे कहते हैं(sandhi kise kahate hain)और यह कितने प्रकार के होते हैं? 

संधि क्या होती हैं इसके बारे में ऊपर परिभाषा के साथ बता दिए हैं ।

ध्यान दीजिए : राम + अनुज = रामानुज। यह दो शब्द राम तथा अनुज से मिलकर बना हैं जिसमें राम के अंतिम वर्ण ‘म’ हैं और अनुज का पहला वर्ण अ हैं । म एक व्यंजन वर्ण हैं इसमें अ वर्ण छुपा हैं  जो अनुज के वाहला वर्ण अ से मिलकर आ हो जाता हैं और सम्पूर्ण  शब्द रामानुज बन जाता हैं। 

 

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संधि के भेद  :

संधि के प्रमुख तीन भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं ।

  1. स्वर संधि ।
  2. व्यंजन संधि ।
  3. विसर्ग संधि ।

 

स्वर संधि किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?  इनके पहचान कैसे करते हैं?

स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मिलने से जो विकार उत्पन होता हैं वही स्वर संधि कहलाता हैं ।

जैसे :

  • देव + आलय = देवालय । 
  • कार्य + आलय = कार्यालय ।
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ।

 

ध्यान दें हिंदी व्याकरण में स्वर वर्ण की संख्या 11 होते हैं जो अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, हैं। 

 

अब स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं 

  1. दीर्घ संधि 
  2. गुण संधि 
  3. वृद्धि संधि 
  4. यन संधि 
  5. अयादि संधि।

अब पहले स्वर संधि के सभी भेदों को बारी – बारी से जानते हैं इसके बाद अन्य संधि का अध्ययन करेंगें। 

 

1 . दीर्घ संधि- दो समान स्वर वर्ण के मिलने से जो विकार उत्पन्न होते हैं वह दीर्घ संधि कहा जाता हैं अर्थात दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाता हैं।

जैसे :

अंग + अंगी = अंगांगी 

अति + इत = अतीत 

 सु + उक्ति = सूक्ति , इत्यादि ।

 गिरि + ईश = गिरीश।

 

 

1 . गुण संधि किसे कहते हैं- यदि ‘अ‘ एवं के बाद इ, ई, उ , ऊ या आये तो  क्रमशः ए , ओ तथा अर हो जाते हैं।

 

  •  देव + ईश = देवेश
  •  महा + इंद्र = महेंद्र   
  •  रमा + ईश = रमेश
  •  महा + उत्स्व = महोत्स्व ।

 

 

2 वृद्धि संधि किसे कहते हैं ? – यदि ह्रस्व तथा दीर्घ के बाद या आये तो दोनों मिलकर ‘ऐ हो जाता हैं।

जैसे :

  • एक + एकम = एकैकम । 
  • महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य।
  • तथा + एव = तथैव।

 

यदि ह्रस्व दीर्घ तथा के बाद या आये तो दोनों के स्थान पर   हो जाता हैं ।

जैसे : परम + औषध = परमौषध 

महा + औषधि = महाऔषधि 

 

 

 3 . यन संधि किसे कहते हैं –  यदि इ , ई के बाद कोइ भी स्वर आता हैं तो  इ , ई के स्थान पर हो जाता हैं और प्रथम पद का अंतिम वर्ण आधा हो जाता हैं।

दधि + आनाथ =  दध्यानय ।

सरस्वती + आज्ञा =  सरस्वत्याज्ञा ।

 

 

5 . अयादि संधि – अयादि संधि के नियम जो निम्नलिखित हैं ।

(1) यदि ए , ऐ , ओ , औ के बाद कोइ अन्य कोई स्वर हो  तो इनके स्थान पर क्रमशः अय , आय ,अव् और आव् हो जाता हैं ।  

जैसे – 

 ने  + अन = नयन )   

 गै + अक = गायक ) 

 भो + अन = भवन ) 

  

इन्हें पढ़ें – व्यंजन संधि किसे कहते हैं परिभाषा भेद एवं उदाहरण ?

 

अब विसर्ग संधि के बारे में जानते हैं :

3 . विसर्ग संधि – स्वर वर्ण अथवा व्यंजन वर्ण के साथ विसर्ग के मेल होने से जो विकार उत्पन्न होता हैं वह विसर्ग संधि कहलाता हैं।

जैसे :

मनः + हर = मनोहर ।

सरः + रोज = सरोज ।

मनः + रथ = मनोरथ  आदि ।

 

व्यंजन संधि के  नियम हैं  जो निम्नलिखित हैं।

 

(i) . यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और उसके आगे घोष व्यंजन अथवा य र ल व हो तो विसर्ग सहित अ का ‘ओ’ हो जाता हैं ।

सरः + वर = सरोवर ।

पुरः + हित = पुरोहित ।

यशः + दा = यशोधा ।

 

 

(ii) . यदि विसर्ग के पहले अ हो और बाद में क ख प फ में कोइ वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता हैं ।

जैसे – प्रातः + काल = प्रातःकाल ।

रजः + कण = रजःकण , आदि ।

 

(iii) . विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोइ अन्य स्वर वर्ण हो और विसर्ग के बाद कोइ भी स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीया , चतुर्थी , पंचम वर्ण या  य र ल व ह हो तो विसर्ग का र हो जाता हैं ।

निः + आधार = निराधार ।

निः + उपाय = निरुपाय ,  इत्यादि ।

 

(iv) .  विसर्ग के पहले इ अथवा  उ  हो और आगे क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ष हो जाता हैं।

 

जैसे :

निः + कपट = निष्कपट ।

निः + फल = निष्फल ।

 

 

(v) . विसर्ग के बाद च या छ हो तो विसर्ग का श हो जाता हैं। ट या ठ हो तो ष हो जाता हैं   और त या थ हो तो स हो जाता हैं ।

जैसे – निः + चय = निश्चय ।

निः + तार = निस्तार ।

 

 

(vi) . विसर्ग के बाद श , ष  या स हो तो विसर्ग का क्रमशः श, ष , स होता हैं  या ज्यों – का – त्यों रह जाता हैं ।

  जैसे :

दुः + शासन = दुःशासन ।

निः + सार = निःसार ।

 

(vii) . यदि इ या ऊ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद र हो , तो इ का ई , उ का ऊ हो जाता हैं और विसर्ग लुप्त हो जाता हैं ।

जैसे :

निः + रोग = निरोग ।

निः + रज = नीरज आदि ।

 

8 . यदि विसर्ग के पहले अ हो और उसके बाद कोइ अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता हैं ।

जैसे – अतः + एव = अतएव ।

 

निष्कर्ष – अभी आपने संधि किसे कहते हैं(sandhi kise kahate hain) संधि के कितने भेद होते हैं? संधि की परिभाषा क्या है? इन सब के सार्थक जानकारी दी गई उम्मीद हैं की आपके प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगें।

 

 

 

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